THE UNIVERSE MODELS OF UNIVERSE

  • Geocentric Model The term “geocentric” means “earth–centered”. The geocentric model claimed that Earth was the center of the cosmos. The geocentric model was devised by Ptolemy, a Greek philosopher who compiled the historical astral observations of the ancient Greeks and Egyptians, which formed the framework for his theory. Ptolemy’s model illustrated that the Earth was stationary and that the Sun, Moon, planets and stars moved around it in perfect circles at constant speeds. Aristotle, one of the most prominent Greek philosophers, advocated the Ptolemaic geocentric model, which was widely accepted until the heliocentric model emerged in the 1500s.भारत का इतिहास CLICK HERE
  • Heliocentric Model The term “heliocentric” means “sun–centered”. The heliocentric model suggested that the sun was the cenetr of the universe. Nicolaus Copernicus was a Polish cleric who debunked the Ptolemaic model by proposing the heliocentric model. Copernicus argued that the Sun was motionless and that all planets, including Earth, revolved around it. He further suggested that the stars were stationary and that the Moon orbited Earth. Although initially rejected by the public and the majority of the scientific community, the Copernican theory garnered support from Galileo and was later proven by Johannes Kepler.
  • The universe began with the Big Bang around 13.6 billion years ago. The Big Bang was a rapid expansion of the universe from a tiny single point. This hot expansion has continued since then, resulting in the expansion of the universe in every direction.
    • At the time of the Big Bang, the universe and all of its matter was concentrated in a single point. As the Big Bang started, this matter was heated to very high temperatures and expanded rapidly.
    • Several scientific observations have convinced astronomers that the Big Bang theory is correct. One of the strongest pieces of evidence is called the cosmic microwave background, or CMBR. This is the remaining heat from the Big Bang that can be seen in all directions when looking into the universe. As the universe has expanded, the initially hot material has cooled, so that it now emits light as microwaves.
    • By looking at distant galaxies and stars, scientists have also discovered that everything seems to be moving away from the Earth. The further away a galaxy is, the faster it appears to be moving. This shows that the universe is still expanding, although there is debate as to whether this expansion will continue forever.
    • The universe has been known to be expanding since 1929, when Edwin Hubble measured the speed at which distant galaxies appear to be receding from Earth’s position in space. In the early 21st century, astronomers measured the rate of expansion and discovered that it is increasing.
      • An increasing rate of expansion means that, contrary to what might be expected from classical models, the universe contains insufficient matter to slow or reverse the expansion. In the present epoch, the rate of expansion has been measured at 42 miles per second per 1 million light–years. This means that distant galaxies are receding much faster than nearby galaxies, and that objects near the universal horizon, which is the farthest an Earthbound observer can theoretically observe, will eventually disappear over the edge and will no longer be visible from Earth.
      • Astrophysicists have modelled the expansion using a concept called dark energy, which describes the poorly understood force that is overcoming gravity and driving the expansion ever faster. The nature of dark energy, and even whether it is a form of energy at all, is unknown. Given enough time, the universe is destined to expand until nothing remains in existence but a diffuse soup of radiation in a near–perfect vacuum.

अक्षांश

अक्षांश:-
  • सभी अक्षांश रेखाएं समांतर होती हैं। इनकी संख्या 180 है तथा अंश में प्रदर्शित की जाती हैं। दो अक्षांशों के मध्य की दूरी 111 किमी. होती है। विषुवत वृत्त 0 डिग्री अक्षांश को प्रदर्शित करता है। विषुवत वृत्त के उत्तर\ के सभी अक्षांश उत्तरी अक्षांश तथा दक्षिण के सभी अक्षांश दक्षिणी अक्षांश कहलाते हैं।
  • पृथ्वी पर खींचे गए अक्षांश वृत्तों में विषुवत वृत्त सबसे बड़ा है। इसकी लम्बाई 40069 किमी. है।
कुछ महत्वपूर्ण अक्षांश
  • कर्क वृत्त धरातल पर उत्तरी गोलार्द्ध में विषुवत वृत्त से 23½°की कोणीय दूरी पर खींचा गया काल्पनिक वृत्त है।
  • मकर वृत्त धरातल पर दक्षिणी गोलार्द्ध में विषुवत रेखा से 23½° की कोणीय दुरी पर खींचा गया काल्पनिक वृत्त है।
  • आर्कटिक वृत्त धरातल पर उत्तरी गोलार्द्ध में विषुवत रेखा से 66½° की कोणीय दूरी पर खींचा गया काल्पनिक वृत्त है।
  • अंटार्कटिक वृत्त धरातल पर दक्षिणी गोलार्द्ध में विषुवत वृत्त से 66½° की कोणीय दूरी पर खींचा गया काल्पनिक वृत्त है।  
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देशांतर
  • किसी स्थान के कोणीय प्रधान यामोत्तर (0° ग्रीनविच) व पश्चिम में होता है। देशांतर कहलाता है। इंग्लैण्ड के ग्रीनविच स्थान से गुजरने वाली रेखा को 0° देशांतर या ग्रीनविच रेखा कहते हैं। इसके पूर्व में 180° तक सभी देशांतर पूर्वी देशांतर और ग्रीनविच देशांतर से पश्चिम की ओर सभी देशांतर पश्चिमी देशांतर कहलाते हैं।
  • पृथ्वी की 24 घंटे में 360° देशांतर घूम जाती है। इसलिए पृथ्वी की घूर्णन 15 अंश देशांतर प्रति घंटा या प्रति 4 मिनट में एक देशांतर है।
कुछ महत्वपूर्ण देशांतर
  • 1884 में वाशिंगटन में हुए एक समझौते के अनुसार 180° को अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा कहते हैं। यह रेखा प्रशांत महासागर में उत्तर से दक्षिण तक फैली है।
  • अनेक द्वीपों को काटने के कारण इस रेखा को 180° देशांतर से कहीं कहीं खिसका दिया गया है। जैसे- 66½° उत्तर में पूर्व की ओर झुकाव बेरिंग जलसन्धि तथा पूर्वी साइबेरिया में एक समय रखने के लिए।
  • 52½° उत्तर में पश्चिम की ओर झुकाव, एल्युशियन द्वीप एवं अलास्का में एक ही समय दर्शाने के लिए।
  • 52½° दक्षिण में पूर्व की ओर झुकाव, एलिस, वालिस, फिजी, टोंगा, न्यूजीलैंड एवं ऑस्ट्रेलिया में एक ही समय रखने के लिए।
  • यदि अंतर्रा तिथि रेखा को पार किया जाता है, तो तिथि में एक दिन परिवर्तन हो जाता है। कोई यात्री यदि पूर्व से पश्चिम (एशिया से उत्तर अमेरिका) दिशा में अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा को पार करेगा टो वह एक दिन पीछे हो जायेगा।
  • इसी तरह कोई यात्री पश्चिम से पूर्व (उत्तर अमेरिका से एशिया) की ओर यात्रा करता है टो वह एक दिन आगे हो जायेगा।
  • अगर अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा पर मध्य रात्रि है तो यदि एशियाई भाग की तरफ शुक्रवार है, तो अमेरिकी भाग की तरफ गुरुवार होगा।
  • ग्रीनविच मीन टाइम- इंग्लैंड के निकट शून्य देशांतर पर स्थित ग्रीनविच वेधशाला से गुजरने वाली काल्पनिक रेखा को प्राइम मेरीडियन माना गया है।
  • ग्रीनविच याम्योत्तर 0°देशांतर पर है यह ग्रीनलैंड व नार्वेजियन सागर, ब्रिटेन, फ़्रांस, स्पेन, अल्जीरिया, माले, बुर्किनाफासो, घाना व दक्षिण अटलांटिक समुद्र से गुजरता है।
  • प्रमाणिक समय- चूँकि विभिन्न देशान्तरों पर स्थित स्थानों का स्थानीय समय भिन्न-भिन्न होता है। इसके कारण बड़े विशाल देश के एक कोने से दूसरे कोने के स्थानों के बीच समय में बड़ा अंतर पड़ जाता है। फलस्वरूप तृतीयक व्यवसायों के सेवा कार्यों में बड़ी बाधा उत्पन्न हो जाती है। इस बाधा व समय की गड़बड़ी को दूर करने के लिए सभी देशों में एक देशांतर रेखा के स्थानीय समय को सारे देश का प्रमाणिक समय मान लिया जाता है। इस प्रकार में सभी स्थानों पर मने जाने वाले ऐसे समय को प्रमाणिक समय व मानक समय कहते हैं। हमारे देश में 82°30´ पूर्वी देशांतर रेखा को मानकमध्यान्ह रेखा (मानक समय) माना गया है। इस मध्यान्ह रेखा का स्थानीय समय सरे देश का स्थानीय समय माना गया है। इसी को भारतीय  मानक समय (IST-India Standard Time) कहा जाता है। भारत का प्रमाणिक समय ग्रीनविच मध्य समय (GMT- Greenwich Mean Time) से 5 घंटा मिनट आगे है।
  • स्थानीय समय वह समय है, जो कि सूर्य के अनुसार हर देशांतर पर निकला जाता है। ज सूर्य उस देशांतर पर लम्बवत चमकता है तो उसे दोपहर के 12 बजे मान लेते हैं। इसे ही स्थानीय समय कहते हैं। यह प्रत्येक देशांतर 4 मिनट के अंतर से भिन्न होता है।
  • भारत में 82½° अंश पूर्वी देशांतर रेखा को मानक समय मन जाता है, जो अल्लाहाबाद के निकट नैनी से गुजरती है।
  • भारत का मानक समय ग्रीनविच मीन टाइम से 5½ घंटा आगे रहता है।
  • पृथ्वी का क्षेत्रफल ५१ वर्ग किलोमीटर जबकि महासागरीय क्षेत्र्फाक 36.18 करोड़ वर्ग किलोमीटर, अर्थात पृथ्वी के कुल क्षेत्र्फाक का 71% भाग है।
  • महाद्वीपीय क्षेत्रफल 14.90 करोड़ वर्ग किमी. है – पृथ्वी के कुल क्षेत्रफल का 29% भाग।
  • उत्तरी गोलार्द्ध को स्थलीय गोलार्द्ध कहते हैं। यहाँ पृथ्वी का 83% स्थलीय भाग स्थित है, जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध को जलीय गोलार्द्ध कहते हैं। यहाँ पृथ्वी का 90.6% जलीय भाग स्थित है।
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पंचायती राज व्यवस्था The Panchayats

 The Panchayats
प्राचीन काल से ही मौजूद है। आधुनिक भारत मेँ स्वाधीनता से पूर्व ही ब्रिटिश शासन के समय मेँ ही पंचायततें स्थानीय स्वशासन की इकाई के रुप आई थीं परन्तु उन्हें उस समय सरकार के नियंत्रण मेँ कार्य करना पडता था।
  • 2 अक्तूबर, 1952 को सामुदायिक विकास कार्यक्रम तथा 2 अक्तूबर 1953  को राष्ट्रीय प्रसार सेवा कार्यक्रम प्रारंभ किए गए, परन्तु दोनो ही कार्यक्रमों अपेक्षित सफलता नहीँ मिली।
  • सामुदायिक विकास कार्यक्रम की जांच के लिए केंद्र सरकार ने 1957 मेँ बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता मेँ एक अध्ययन दल का गठन किया। इस दल ने 1957 के अंत मेँ अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की, कि लोकतांत्रिक विकेंद्रीयकरण और सामुदायिक कार्यक्रम को सफल बनाने हैतु पंचायत राज्य संस्थाओं की अविलम्ब शुरुआत की जानी चाहिए। अध्ययन दल ने इसे लोकतांत्रिक विकेंद्रीयकरण का नाम दिया।
  • प्रारंभ मेँ पंचायती राज संस्थाओं की संरचना भिन्न-भिन्न राज्योँ मेँ अलग अलग रही। देश के 14 राज्यों संघ शासित प्रदेशों में द्विस्तरीय प्रणाली और 9 राज्यों / संघ शासित प्रदेशों में एक स्तरीय प्रणाली विद्यमान थी।
  • पंचायती राज संस्थाएं ठीक तरह से कार्य नहीँ कर रही थी, अतः केंद्र सरकार ने 13 सदस्यीय अशोक मेहता समिति का गठन किया। इस समिति ने सिफारिश की कि विकेंद्रीकरण का प्रथम स्तर जिला हो, उसके नीचे मंडल पंचायत का गठन किया जाए जिसमेँ लगभग 10-15 गांव शामिल हों। ग्राम पंचायत या पंचायत समिति की जरुरत नहीँ है, पंचायतो का कार्यकाल केवल 4 साल का हो और विकास कार्यक्रम जिला परिषद द्वारा तैयार किया जाए तथा उनका क्रियान्वयन मंडल पंचायत द्वारा हो। इस सिफारिशों को क्रियान्वित नहीं किया जा सका।
प्रमुख समिति एवं आयोग
  • 1985 मेँ डॉं. जी. वी. के. राव की अध्यक्षता में एक समिति ने नीति नियोजन और कार्यक्रम क्रियान्वयन के लिए जिले को आधार बनाने और पंचायती राज संस्थाओं मेँ नियमित चुनाव कराने की सिफारिश की।
  • 1987 मेँ पंचायती राज संस्थाओं की समीक्षा करने तथा उनमेँ सुधार के उपाय हेतु सुझाव देने के लिए डाक्टर लक्ष्मीमल सिंघवी की अध्यक्षता मेँ समिति का गठन किया गया। इस समिति ने ग्राम पंचायतो को आत्मनिर्भर बनाने के लिए और उनको ज्यादा आर्थिक संशोधन  देने की सिफारिश की।
  • 1989 मेँ राजीव गांधी की सरकार ने पंचायत राज प्रणाली में सुधार हेतु 64वां संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा मेँ पेश किया, परन्तु यह पारित न हो सका।
  • पंचायतो को संविधान की सातवीँ अनुसूची मेँ राज्य सूची की प्रविष्टि 5 का विषय माना गया है। संविधान के अनुच्छेद 40  मेँ पंचायतों के संबंध मेँ राज्य को कानून बनाने का का अधिकार दिया गया है, इस प्रकार पंचायत राज्य सरकार का विषय है। इसके गठन तथा राज्य सरकारों को चुनाव कराने का अधिकार राज्यों को है।
  • 73वें संविधान संसोधन, 1993 के द्वारा पंचायतो को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया है। इसमेँ अनुच्छेद 243 (घ) के तहत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है।
  • प्रत्येक पंचायत मेँ प्रत्यक्ष निर्वाचन से भरे जाने वाले कुल स्थानोँ मेँ से 1/3 स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। इस आरक्षण से स्थानीय स्वशासन के स्तर पर महिलाओं मेँ काफी जागरुकता आई है।
  • पंचायती राज प्रधान लक्ष्य ग्रामवासियों मेँ शक्ति का विकेंद्रीयकरण है, जिससे वे अपनी आवश्यकताओं के अनुरुप नीतियाँ बना सकें और लागू कर सकें।
  • भारत मेँ त्रिस्तरीय पंचायत राजतंत्र स्थापना की सिफारिश बलवंत राय मेहता समिति ने की थी। इन सिफारिशों के आधार पर ही राजस्थान विधानसभा ने 2 सितंबर, 1959 को पंचायती राज अधिनियम पारित किया। अधिनियम के प्रावधानोँ के अनुरुप पंडित जवाहरलाल नेहरु ने 2 अक्टूबर, 1959 को राजस्थान के नागौर जिले मेँ पंचायती राज का उद्घाटन किया।
  • बलवंत राय मेहता समिति ने नवंबर, 1957 मेँ अपनी सिफारिशेँ प्रस्तुत की थीं, जिसमेँ उन्होंने प्रजातांत्रिक विकेंद्रीयकरण की सिफारिश की थी, इसके अनुसार तीन स्तरों पर पंचायत संस्थाओं का गठन होना था। जिला स्तर, ग्राम स्तर और ब्लाक स्तर।
  • राजस्थान के बाद आंध्र प्रदेश ने पंचायती राजव्यवस्था अपने राज्य मेँ लागू की।
  • राज्य वित्त आयोग का गठन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243 -झ के अंतर्गत किया गया। यह पंचायत की वित्तीय स्थिति के पुनरावलोकन के लिए गठित किया गया है।
73वां संविधान संशोधन अधिनियम
  • इसके द्वारा पंचायती राज के त्रिस्तरीय ढांचे का प्रावधान किया गया है। ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायतें, प्रखंड (ब्लाक) स्तर पर पंचायत समिति, जिला स्तर पर जिला परिषद के गठन की बात कही गई है।
  • पंचायती राज संस्था के प्रत्येक स्तर में एक-तिहाई स्थानों पर महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है।
  • इसका कार्यकाल 5 वर्ष निर्धारित किया गया है।
  • राज्य की संचित निधि इन संस्थाओं को अनुदान देने की व्यवस्था की गई है।
  • 73वें संविधान संशोधन अधिनियम के बाद पंचायती राज अधिनियम का निर्माण करने वाला प्रथम राज्य कर्नाटक है।
74वां संविधान संशोधन अधिनियम
  • स्थानीय शहरी निकायों को एक समान ढांचा निर्मित करने तथा इस निकायों को स्वायत्तःशासी सरकार की प्रभावी लोकतांत्रिक इकाई के रुप मेँ सहायता करने के उद्देश्य से 1992 मेँ संसद मेँ नगरपालिका से संबंधित 74वां संशोधन अधिनियम 1992 पारित किया गया। इस संसोधन द्वारा खंड 9 (क) जोड़ा गया। खंड 9 (क) मेँ अनुच्छेद 243 (त) अनुच्छेद से 243 (य) तक कुल 18 अनुच्छेद हैं। 74वें संविधान संशोधन से 12 वीँ अनुसूची गई।
  • इसके अंतर्गत 3 प्रकार की नगरपालिकायें होगीं, जिसमे नगर पंचायत (ऐसा ग्रामीण क्षेत्र, जो नगर क्षेत्र मेँ परिवर्तित हो रहा हो), नगर परिषद (छोटे नगर क्षेत्र के लिए), नगर निगम (बड़े नगर क्षेत्र के लिए) होंगें।
  • इन संस्थानोँ मेँ महिलाओं के लिए आरक्षण 1/3 भाग आरक्षित है।
  • नगरीय संस्थाओं का कार्यकाल 5 वर्ष होगा, विघटन की स्थिति मेँ 6 माह मेँ चुनाव कराना अनिवार्य होगा।भारत सरकार अघिनियम, 1935 click here
नगरीय स्वशासन का विकास
  • भारत मेँ नगरीय प्रशासन की व्यवस्था प्राचीन काल से ही है। मनुस्मृति, महाभारत, मेगस्थनीज़ की इंडिका मेँ  का उल्लेख है।
  • आधुनिक काल मेँ सबसे पहले 1687 मेँ पूर्व प्रेसीडेन्सी शहर मद्रास (चेन्नई) मेँ नगर निगम की स्थापना की गई थी।
  • इसके बाद 1726 में बम्बई (मुंबई) और कलकत्ता (कोलकाता) में नगर निगम की स्थापना हुई।
  • 1870 मेँ लार्ड मेयो के वित्तीय विकेंद्रीकरण के प्रस्ताव ने नगरीय स्वशासन के विकास को नई दिशा दी।
  • 1882 में लार्ड रिपन ने एक व्यापक आधार पर नगरपालिकाओं का गठन किया। भारत सरकार के 1919 के अधिनियम मेँ एक भाग स्थानीय स्वायत्त सरकार के प्रसार से संबंधित था।
  • श्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी click here

Nuclear Reactor Or Atomic Pile

ईंधन Fuel
यह रिएक्टर का सबसे प्रमुख भाग है। यही वह पदार्थ है जिसका विखंडन किया जाता है। इस कार्य के लिए U-235 या Pu-239 प्रयोग किये जाते हैं।
मंदक Moderator
इसका कार्य न्यूट्रानों की गति को मंद करना है। इसके लिए भारी जल, ग्रेफाइट अथवा बेरिलियम ऑक्साइड प्रयुक्त किये जाते हैं। भारी जल सबसे अच्छा मंदक है।
शीतलक Coolant
विखंडन होने पर अत्यधिक मात्र में ऊष्मा उत्पन्न होती है, जिसको शीतलक द्वारा हटाया जाता है। इसके लिए वायु, जल अथवा कार्बन डाई ऑक्साइड को रिएक्टर में प्रवाहित करते हैं। इस ऊष्मा को भाप बनाने के काम में लिया जाता है जिससे टरबाइन चलाकर बिजली उत्पन्न की जाती है।
परिरक्षक Shield
रिएक्टर से कई प्रकार की तीव्र किरणें निकलती हैं जिनसे रिएक्टर के पास कम करने वालों को हानि हो सकती है।इससे उनकी रक्षा करने के लिए रिएक्टर के चारों तरफ कंक्रीट की मोटी-मोटी दीवारें बना दी जाती हैं।
नियंत्रक Controller
रिएक्टर में विखंडन की गति पर नियंत्रण करना आवश्यक है, इसके लिए कैडमियम की छड़ें प्रयुक्त की जाती हैं। रिएक्टर में इन छड़ों को रखकर आवश्यकता अनुसार अन्दर बाहर खिसकाकर विखंडन की गति कम अथवा अधिक की जाती है।
संसार का पहला न्यूक्लियर रिएक्टर सन 1942 में फर्मी के निर्देशन में शिकागो यूनिवर्सिटी में बना था। जिसमे U-235 ईंधन के रूप में प्रयोग किया गया था। इसमें ग्रेफाइट मंदक के रूप में कार्य करता था।

सूर्य की उर्जा Solar Energy
सूर्य लगातार प्रकाश व ऊष्मा के रूप में अति उच्च दर से उर्जा का उत्सर्जन कर रहा है। ज्योतिष व भूगर्भ सम्बन्धी गणनाओं के आधार पर यह पता चला है की सूर्य द्वारा यह उत्सर्जन करोड़ों वर्षों से हो रहा है। रासायनिक क्रियाओं से इतनी उर्जा का उत्सर्जन संभव नहीं है, क्योंकि सूर्य किसी वाह्य पदार्थ (जैसे कार्बन) से बना होता, तो भी इसके पूर्ण दहन से इतनी बड़ी दर पर उर्जा केवल कुछ हजार वर्षों तक ही मिल पायेगी।
वास्तव में सूर्य की अपार उर्जा का स्रोत हल्के नाभिकों का संलयन (Fusion) है। सूर्य के द्रव्यमान का लगभग 90% अंश हाइड्रोजन तथा हीलियम है। शेष 10% अंश में अन्य तत्व हैं जिनमे अधिकांश हलके तत्व हैं। सूर्य के वाह्य पृष्ठ का अनुमानित ताप 6000°C तथा इसके भीतरी भाग का अनुमानित ताप 15,000,000°C सेंटीग्रेड है। इतने ऊँचे ताप पर हाइड्रोजन हीलियम में लगातार परिवर्तित होता रहता है और इस प्रक्रिया को संलयन कहते हैं तथा सूर्य में उपस्थित सभी तत्वों के परमाणुओं से बाहरी इलेक्ट्रान निकल जाते हैं, अतः वे तत्व नाभिकीय अवस्था में होते हैं। इन नाभिकों का वेग इतना अधिक होता है की इनके परस्पर टकराने से इनका संलयन स्वतः  होता रहता है तथा अपार उर्जा उत्पन्न होती रहती है।

कार्बन साइकिल Carbon Cycle
सन 1939 में अमरीकन वैज्ञानिक बेथे (बेथे) ने यह बताया कि सूर्य के, चार हाइड्रोजन नाभिकों (4 प्रोटानों) एक हीलियम नाभिक में संलयन सीधे न होकर, कई ताप-नाभिकीय (Thermo-Nuclear Reactions) की एक साइकिल के द्वारा होता है जिसमें कार्बन एक उत्प्रेक का कार्य करता है। इस साइकिल को कार्बन साइकिल कहते हैं। इस प्रकार पूरी कार्बन साइकिल में 4 हाइड्रोजन के नाभिक संलयित होकर एक हीलियम के नाभिक का निर्माण करते हैं।

प्रोटॅान प्रोटॅान साइकिल H-H Cycle
नये नाभिकीय आंकड़ों के आधार पर अब विश्वास किया जाता है, की सूर्य में कार्बन साइकिल की अपेक्षा एक अन्य साइकिल की अधिक सम्भावना है, जिसे प्रोटॅान- प्रोटॅान साइकिल कहते हैं। इस साइकिल में भी कई अभिक्रियाओं के द्वारा हाइड्रोजन के नाभिक संलयित होकर हीलियम के नाभिक का निर्माण करते हैं।

List of India's prime ministers in Hindi

  1. जवाहर लाल नेहरु आजादी से 26 मई 1964 तक
  2. गुलजारी लाल नंदा (Gulzari Lal Nanda)- 27 मई, 1964 से 9 जून, 1964
  3. लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) - 9 जून, 1964 से 11 जनवरी, 1966
  4. गुलजारी लाल नंदा (Gulzari Lal Nanda) - 11 जनवरी, 1966 से 24 जनवरी, 1966
  5. इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) - 24 जनवरी, 1966 से 24 मार्च, 1977
  6. मोरारजी देसाई (Morarji Desai) - 24 मार्च, 1977 से 28 जुलाई, 1979
  7. चौधरी चरण सिंह (Chaudhary Charan Singh) - 28 जुलाई, 1979 से 14 जनवरी, 1980
  8. इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) - 14 जनवरी, 1980 से 31 अक्टूबर, 1984
  9. राजीव गांधी (Rajeev Gandhi) - 31 अक्टूबर, 1984 से 2 दिसम्बर, 1989
  10. विश्वनाथ प्रताप सिंह (Vishwanath Prtap Singh) - 2 दिसम्बर, 1989 से 10 नवंबर, 1990
  11. चंद्रशेखर (Chandrasekhar)  - 10 नवंबर, 1990 से 21 जून, 1991
  12. नरसिंह राव (Narasimha Rao) - 21 जून, 1991 से 16 मई, 1996
  13. अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) - 16 मई, 1996 से 1 जून, 1996
  14. एच डी देवगौड़ा  (H D Deve Gowda) - 1 जून, 1996 से 21 अप्रेल, 1997
  15. इंद्रकुमार गुज़राल (Thunderer Kumar Gujral) - 21 अप्रेल, 1997 से 19 मार्च, 1998
  16. अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) - 19 मार्च, 1998 से 22 मई, 2004
  17. मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) - 22 मई, 2004 से 22 मई, 2009
  18. मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) - 22 मई, 2009 से 17 मई 2014
  19. नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) - 26 मई, 2014 से अब तक

(The Protection of Human Rights Act, 1993)

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 संपूर्ण देश में 28 सितम्बर, 1993 से लागू हुआ। जम्मू-कश्मीर के मामले में संविधान की सातवीं अनुसूची में उल्लेखित कुछ निश्चित प्रवर्तित विषयों तक ही इसका क्षेत्राधिकार है। 

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 में मानव अधिकार को परिभाषित किया गया है। इसे व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता तथा गरिमा से संबंधित बताया गया है जिसे संविधान द्वारा गारंटी प्रदान की गई है। ये अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदाओं (International Covenants) में समाविष्ट हैं तथा भारत में न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय (enforceable) हैं। अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा का तात्पर्य सिविल और राजनीतिक अधिकारों संबंधी अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा तथा 16 दिसंबर, 1966 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाए गए आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा तथा संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाए गए ऐसे अन्य प्रसंविदा या अभिसमय (Covenant or Convention) से है जिसे केंद्र सरकार अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट (Specify) करे। 


मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के अंतर्गत देश में मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए संस्थात्मक व्यवस्था की स्थापना संबंधी प्रावधान शामिल किए गए हैं। राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तथा राज्य स्तर पर राज्य मानवाधिकार आयोग की स्थापना, उसके सदस्यों की नियुक्ति, कार्य एवं शक्तियाँ, उनके अध्यक्ष एवं सदस्यों के कार्यकाल एवं सेवा शर्तें, मानवाधिकार हनन मामलों की जाँच प्रक्रिया, आयोग की वार्षिक एवं विशेष रिपोर्टों, मानवाधिकार न्यायालयों, वित्त, लेखा एवं लेखा परीक्षा (Account and Audit) के साथ अन्य विविध पहलुओं का जिक्र किया गया है। अधिनियम के अंतर्गत केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग नामक निकाय का गठन किया है। आयोग एक स्वायत्त संस्था की तरह कार्य करता है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission) 
1. अधिनियम के अनुसार आयोग निम्नलिखित व्यक्तियों से मिलकर बनेगाः
(i) अध्यक्ष - जो उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश रहा हो। 

(ii) एक सदस्य - जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश हो या रहा हो। 


(iii) एक सदस्य - जो किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश हो या रहा हो। 


(iv) दो सदस्य ऐसे व्यक्ति होंगे जिन्हें मानव अधिकारों से संबंधित विषयों का ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव हो। 
2. राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग तथा राष्ट्रीय महिला आयोग के अध्यक्ष विशिष्ट कार्यों के निर्वहन में सदस्य समझे जाएंगे। 

3. एक महासचिव (Secretary General) होगा जो आयोग का मुख्य कार्यकारी अधिकारी होगा तथा ऐसे कर्त्तव्यों का निर्वहन करेगा जो आयोग या अध्यक्ष उसे प्रत्यायोजित (Delegate) करेंगे। 
अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति (Appointment of Chairperson and Other Members)
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा एक समिति की अनुशंसा पर की जाएगी। इस समिति का गठन निम्नलिखित व्यक्तियों से मिलकर होगाः 
  • प्रधानमंत्री - अध्यक्ष
  • लोकसभा अध्यक्ष - सदस्य
  • गृहमंत्री - सदस्य
  • लोकसभा में विपक्ष के नेता - सदस्य
  • राज्यसभा में विपक्ष के नेता - सदस्य
  • राज्यसभा के उपसभापति - सदस्य
यहाँ ध्यान रखने वाली बात है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श किए बिना सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के किसी वर्तमान न्यायाधीश (sitting judge) की नियुक्ति नहीं की जा सकती है। अनुशंसा करने वाली समिति में किसी रिक्ति (Vacancy) के आधार पर अध्यक्ष या सदस्य की नियुक्ति अमान्य (Invalid) नहीं होगी। 
अध्यक्ष या सदस्यों का त्यागपत्र या पदमुक्ति (Resignation and Removal of Chairperson and Members)
अध्यक्ष या सदस्य राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लिखित सूचना द्वारा अपना पद त्याग सकेगा। राष्ट्रपति द्वारा अध्यक्ष या किसी सदस्य को निम्नलिखित आधार पर हटाया जा सकता हैः 
1. यदि वह दिवालिया घोषित किया जाता हो। 

2. अपने कार्यकाल के दौरान अपने पद के कर्त्तव्यों से अलग किसी सवैतनिक (Paid) रोजगार में लगा हो। 


3. मानसिक या शारीरिक अक्षमता के कारण अपने पद पर बने रहने के अयोग्य हो। 


4. विकृत चित्त (Unsound Mind) का हो तथा किसी सक्षम न्यायालय द्वारा ऐसा घोषित किया जाता हो। 


5. किसी ऐसे अपराध के लिए दोषी ठहराया जाता हो और कारावास की सछाा से दण्डित किया जाता हो जो राष्ट्रपति की राय में नैतिक गिरावट 
से जुड़ी हो।
भारत-श्रीलंका (मित्र शक्ति )
भारत-नेपाल (सूर्य किरण)
भारत-बांग्लादेश (सम्प्रीती)
भारत-चीन (हैंड-इन-हैंड)

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी)

गुड्स एंड सर्विसेस टैक्स अप्रत्यक्ष कर की श्रेणी में आएगा। जीएसटी वह वैट है जिसमे वस्तुओं और सेवाओं दोनों पर ही लागू किया जाएगा। वर्तमान में वैट केवल वस्तुओं पर ही लागू होता है। जीएसटी लागू होने के बाद सेल्स टैक्स, सर्विस टैक्स, एक्साइज ड्यूटी, वैट आदि तमाम तरह के टैक्स हटा दिए जाएंगे। इससे पूरा देश एकीकृत बाजार में बदल जाएगा।
लोकसभा द्वारा 8 अगस्त 2016 को संविधान के 122वें (जीएसटी) संशोधन विधेयक-2014 को सर्वसम्मति से पारित किया गया। विधेयक दो तिहाई बहुमत द्वारा 443 सदस्यों के मतों द्वारा पारित हुआ।
इससे पहले वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संशोधन विधेयक 3 अगस्त 2016 को राज्यसभा में पारित किया गया था।
विधयेक पारित होने के लिए दो तिहाई मतों की आवश्यकता के स्थान पर सभी 197 सांसदों ने पक्ष में वोट डाला।
विधेयक के प्रावधान
  • भारत के संघीय ढांचे को ध्यान में रखते हुए जीएसटी के दो घटक होंगे- केन्द्रीय जीएसटी एवं राज्य जीएसटी। इसके अंतर्गत राज्य एवं केंद्र को अपने-अपने जीएसटी विधेयक लाने होंगे।
  • वस्तुओं एवं सेवाओं के लिए अथवा उनके आयात के लिए, केंद्र एक अन्य एकीकृत जीएसटी पर विचार कर रही है।
  • एल्कोहल को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है।
  • इससे केंद्र अंतर-राज्य आपूर्ति के लिए दो वर्ष अथवा अधिक समय के लिए एक प्रतिशत अतिरिक्त कर लगा सकता है। यह कर आपूर्ति के स्रोत राज्यों से वसूला जायेगा।
  • प्रारंभिक अवस्था में जीएसटी पेट्रोलियम क्रूड, हाई स्पीड डीज़ल, मोटर स्पिरिट (पेट्रोल), प्राकृतिक गैस एवं हवाई टरबाइन ईंधन में पर लागू नहीं होगा।
  • तम्बाकू एवं तम्बाकू उत्पाद जीएसटी के दायरे में आयेंगे। केंद्र सरकार तम्बाकू पर उत्पाद शुल्क भी लगाएगी।
  • संसद द्वारा पहले पांच वर्षों तक राज्यों को जीएसटी से होने वाले नुकसान से सुरक्षा प्रदान करने के लिए मुआवजा राशि दी जाएगी।
  • इसके लागू हो जाने के बाद निम्न प्रकार के करों की समाप्ति हो जाएगी-
केंद्रीय कर-
  1. सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी
  2. एडीशनल एक्साइज ड्यूटी
  3. स्पेशल एडीशनल ड्यूट ऑफ कस्टम्म्स
  4. मेडिसिनल एंड टॉयलेट प्रिपरेशंस (एक्साइज ड्यूटी) एक्ट 1955 के तहत एक्साइज ड्यूटी
  5. सर्विस टैक्स
  6. एडीशनल कस्टम्स ड्यूटी
  7. सेंट्रल सरचार्ज व सेस
राज्य कर-
  1. वैल्यू एडेड टैक्स (वैट)/ सेल्स टैक्स
  2. लॉटरीज, बेटिंग व गैम्बिलिंग पर कर
  3. एंटरटेनमेंट टैक्स
  4. सेंट्रल सेल्स टैक्स
  5. ऑक्ट्रॉय व एंट्री टैक्स
  6. परचेज टैक्स
  7. लग्जरी टैक्स
  8. स्टेट सेस व सरचार्ज
जीएसटी काउंसिल के चेयरमैन होंगे केंद्रीय वित्त मंत्री
  • केंद्र से अन्य सदस्यों में वित्त राज्य मंत्री
  • वाइस चेयरमैन होंगे किसी एक राज्य के वित्त मंत्री
  • सदस्य होंगे राज्यों के वित्त मंत्री
जीएसटी क्‍या है और यह किस प्रकार काम करता है
जीएसटी पूरे देश के लिए एक अप्रत्‍यक्ष कर है जो भारत को एकीकृत साझा बाजार बना देगा। जीएसटी विनिर्माता से लेकर उपभोक्‍ता तक वस्‍तुओं और सेवाओं की आपूर्ति पर एक एकल कर है। प्रत्‍येक चरण पर भुगतान किये गये इनपुट करों का लाभ मूल्‍य संवर्धन के बाद के चरण में उपलब्‍ध होगा जो प्रत्‍येक चरण में मूल्‍य संवर्धन पर जीएसटी को आवश्‍यक रूप से एक कर बना देता है। अंतिम उपभोक्‍ताओं को इस प्रकार आपूर्ति श्रृंखला में अंतिम डीलर द्वारा लगाया गया जीएसटी ही वहन करना होगा। इससे पिछले चरणों के सभी मुनाफे समाप्‍त हो जायेंगे।
जीएसटी से होने वाले लाभ
जीएसटी के लाभों को संक्षेप में इस प्रकार बताया जा सकता है-
व्‍यापार और उद्योग के लिए
  • आसान अनुपालन-एक मजबूत और व्‍यापक सूचना प्रौद्योगिकी प्रणाली भारत में जीएसटी व्‍यवस्‍था की नींव होगी इसलिए पंजीकरण, रिटर्न, भुगतान आदि जैसी सभी कर भुगतान सेवाएं करदाताओं को ऑनलाइन उपलब्‍ध होंगी, जिससे इसका अनुपालन बहुत सरल और पारदर्शी हो जायेगा।
  • कर दरों और संरचनाओं की एकरूपता- जीएसटी यह सुनिश्चित करेगा कि अप्रत्‍यक्ष कर दरें और ढांचे पूरे देश में एकसमान हैं। इससे निश्चिंतता में तो बढ़ोतरी होगी ही व्‍यापार करना भी आसान हो जाएगा। दूसरे शब्‍दों में जीएसटी देश में व्‍यापार के कामकाज को कर तटस्‍थ बना देगा फिर चाहे व्‍यापार करने की जगह का चुनाव कहीं भी जाये।
  • करों पर कराधान (कैसकेडिंग) की समाप्ति- मूल्‍य श्रृंखला और समस्‍त राज्‍यों की सीमाओं से बाहर टैक्‍स क्रेडिट की सुचारू प्रणाली से यह सुनिश्चित होगा कि करों पर कम से कम कराधान हों। इससे व्‍यापार करने में आने वाली छुपी हुई लागत कम होगी।
  • प्रतिस्‍पर्धा में सुधार व्‍यापार करने में लेन-देन लागत घटने से व्‍यापार और उद्योग के लिए प्रतिस्‍पर्धा में सुधार को बढ़ावा मिलेगा।
  • विनिर्माताओं और निर्यातकों को लाभ जीएसटी में केन्‍द्र और राज्‍यों के करों के शामिल होने और इनपुट वस्‍तुएं और सेवाएं पूर्ण और व्‍यापक रूप से समाहित होने और केन्‍द्रीय बिक्री कर चरणबद्ध रूप से बाहर हो जाने से स्‍थानीय रूप से निर्मित वस्‍तुओं और सेवाओं की लागत कम हो जाएगी। इससे भारतीय वस्‍तुओं और सेवाओं की अंतर्राष्‍ट्रीय बाजार में होने वाली प्रतिस्‍पर्धा में बढ़ोतरी होगी और भारतीय निर्यात को भी बढ़ावा मिलेगा। पूरे देश में कर दरों और प्रक्रियाओं की एकरूपता से अनुपालन लागत घटाने में लंबा रास्‍ता तय करना होगा। 
केन्‍द्र और राज्‍य सरकारों के लिए
  • सरल और आसान प्रशासन- केन्‍द्र और राज्‍य स्‍तर पर बहुआयामी अप्रत्‍यक्ष करों को जीएसटी लागू करके हटाया जा रहा है। मजबूत सूचना प्रौद्योगिकी प्रणाली पर आधारित जीएसटी केन्‍द्र और राज्‍यों द्वारा अभी तक लगाए गए सभी अन्‍य प्रत्‍यक्ष करों की तुलना में प्रशासनिक नजरिए से बहुत सरल और आसान होगा।
  • कदाचार पर बेहतर नियंत्रण मजबूत सूचना प्रौद्योगिकी बुनियादी ढांचे के कारण जीएसटी से बेहतर कर अनुपालन परिणाम प्राप्‍त होंगे। मूल्‍य संवर्धन की श्रृंखला में एक चरण से दूसरे चरण में इनपुट कर क्रेडिट कर सुगम हस्‍तांतरण जीएसटी के स्‍वरूप में एक अंत:निर्मित तंत्र है, जिससे व्‍यापारियों को कर अनुपालन में प्रोत्‍साहन दिया जाएगा।
  • अधिक राजस्‍व निपुणता जीएसटी से सरकार के कर राजस्‍व की वसूली लागत में कमी आने की उम्‍मीद है। इसलिए इससे उच्‍च राजस्‍व निपुणता को बढ़ावा मिलेगा। 
उपभोक्‍ताओं के लिए
  • वस्‍तुओं और सेवाओं के मूल्‍य के अनुपा‍ती एकल एवं पारदर्शी कर केन्‍द्र और राज्‍यों द्वारा लगाए गए बहुल अप्रत्‍यक्ष करों या मूल्‍य संवर्धन के प्रगामी चरणों में उपलब्‍ध गैर-इनपुट कर क्रेडिट के कारण आज देश में अनेक छिपे करों से अधिकांश वस्‍तुओं और सेवाओं की लागत पर प्रभाव पड़ता है। जीएसटी के अधीन विनिर्माता से लेकर उपभोक्‍ताओं तक केवल एक ही कर लगेगा, जिससे अंतिम उपभोक्‍ता पर लगने वाले करों में पारदर्शिता को बढ़ावा मिलेगा।
  • समग्र कर भार में राहत निपुणता बढ़ने और कदाचार पर रोक लगने के कारण अधिकांश उपभोक्‍ता वस्‍तुओं पर समग्र कर भार कम होगा, जिससे उपभोक्‍तओं को लाभ मिलेगा।
केन्‍द्र और राज्‍य स्‍तर पर जीएसटी में शामिल किए जाने कर 
केन्‍द्रीय स्‍तर निम्‍नलिखित करों को शामिल किया जा रहा है-
  1. केन्‍द्रीय उत्‍पाद शुल्‍क
  2. अतिरिक्त उत्पाद शुल्क,
  3. सेवा कर,
  4. अतिरिक्त सीमा शुल्क आमतौर पर जिसे काउंटरवेलिंग ड्यूटी के रूप में जाना जाता है, और
  5. सीमा शुल्क का विशेष अतिरिक्त शुल्क। 
राज्य स्तर पर, निम्न करों को शामिल किया जा रहा है-
  1. राज्य मूल्‍य संवर्धन कर/ बिक्री कर
  2. मनोरंजन कर (स्थानीय निकायों द्वारा लागू करों को छोड़कर), केंद्रीय बिक्री कर (केंद्र द्वारा लागू और राज्‍य द्वारा वसूल किये जाने वाला)
  3. चुंगी और प्रवेश कर,
  4. खरीद कर,
  5. विलासिता कर, और
  6. लॉटरी, सट्टा और जुआ पर कर। 
जीएसटी से सम्बंधित प्रमुख कालक्रम व घटनाएं
देश में जीएसटी को 13 वर्ष लंबी यात्रा के बाद पेश किया जा रहा है, क्‍योंकि अप्रत्‍यक्ष करों पर गठित केलकर कार्यबल की रिपोर्ट में सर्वप्रथम इसके बारे में विचार-विमर्श किया गया था। भारत में जीएसटी की शुरूआत करने के प्रस्‍ताव पर प्रमुख मील के पत्‍थरों को दर्शाने वाला कालक्रम संक्षिप्‍त में इस प्रकार है –
  • 2003 में प्रत्‍यक्ष कर पर केलकर कार्यबल ने वैट सिद्धांत पर आधारित एक व्‍यापक वस्‍तु एवं सेवाकर (जीएसटी) का सुझाव दिया था।
  • सबसे पहले वित्‍त वर्ष 2006-07 के बजट भाषण में 01 अप्रैल 2010 से राष्‍ट्रीय स्‍तर पर वस्‍तुए एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू करने का प्रस्‍ताव किया गया था।
  • क्‍योंकि प्रस्‍ताव में न केवल केन्‍द्र द्वारा लगाए जाने वाले अप्रत्‍यक्ष करों बल्कि राज्‍य द्वारा लगाए जाने वाले करों में भी सुधार और पुनर्गठन करना शामिल है। इसलिए जीएसटी लागू करने का डिजाइन और रोडमैप तैयार करने की जिम्‍मेदारी राज्‍य वित्‍त मंत्रियों की अधिकार प्राप्‍त समिति को सौंपी गई थी।
  • भारत सरकार और राज्‍यों से प्राप्‍त सुझावों के आधार पर इस अधिकार प्राप्‍त समिति ने नवम्‍बर, 2009 में वस्‍तु एवं सेवा कर पर अपना पहला विचार-विमर्श पत्र (एफडीपी) जारी किया।
  • जीएसटी से संबंधित कार्य को आगे बढ़ाने के क्रम में केन्‍द्र के साथ-साथ राज्‍य सरकार के अधिकारियों को शामिल करके एक संयुक्‍त कार्य समूह का सितम्‍बर, 2009 में गठन किया गया था।
  • जीएसटी लागू करने में सक्षमता के लिए संविधान संशोधन करने के लिए संविधान (155वां संशोधन) विधेयक मार्च, 2011 में लोकसभा में पेश किया गया। निर्धारित प्रक्रिया के साथ विधेयक को जांच और रिपोर्ट के लिए संसद की स्‍थायी वित्‍त समिति के पास भेजा गया।
  • इस दौरान केन्‍द्रीय वित्‍त मंत्री और राज्‍य वित्‍त मंत्रियों की अधिकार प्राप्‍त समिति के मध्‍य 08 नवम्‍बर, 2012 को आयोजित बैठक में लिये गये निर्णय के अनुपालन में भारत सरकार, राज्‍य सरकारों के अधिकारियों और अधिकार प्राप्‍त समिति को शामिल करके जीएसटी स्‍वरूप पर समिति का गठन किया गया।
  • इस समिति ने जीएसटी स्‍वरूप और संविधान 115वां संशोधन विधेयक के बारे में विस्‍तृत विचार-विमर्श किया और जनवरी, 2013 में अपनी रिपोर्ट प्रस्‍तुत की। इस रिपोर्ट के आधार पर अधिकार प्राप्‍त समिति ने जनवरी, 2013 में भुवनेश्‍वर में आयोजित अपनी बैठक में संविधान संशोधन विधेयक में कुछ परिवर्तनों की सिफारिश की।
  • अधिकार प्राप्‍त समिति ने अपनी भुवनेश्‍वर में आयोजित बैठक में जीएसटी के विभिन्‍न पहलुओं पर विचार-विमर्श करने और अपनी रिपोर्ट देने के लिए अधिकारियों की तीन समितियों का निम्‍न प्रकार गठन करने का निर्णय लिया-
  1. आपूर्ति नियमों के स्‍थान और राजस्व तटस्थ दरों पर समिति;
  2. दोहरे नियंत्रण, सीमा और छूट पर समिति
  3. आयात पर आईजीएसटी और जीएसटी के लिए समिति
  • संसदीय स्‍थायी समिति ने अगस्‍त 2013 में अपनी रिपोर्ट लोकसभा में प्रस्‍तुत की। अधिकार प्राप्‍त समिति और संसदीय स्‍थायी समिति द्वारा की गई सिफारिशों की मंत्रालय ने विधायी विभाग के परामर्श में जांच की। अधिकार प्राप्‍त समिति को संसदीय स्‍थायी समिति द्वारा की गई अधिकाशं सिफारिशों को स्‍वीकार कर लिया गया और मसौदा संशोधन विधेयक को उचित रूप से संशोधित किया गयाऔर प्रारूप संशोधन विधेयक सही तरीके से संशोधित किया गया।
  • उपरोक्त परिवर्तनों सहित अंतिम प्रारूप संविधान संशोधन विधेयक सितंबर 2013 में अधिकार प्राप्त समिति के पास विचार के लिए भेजा गया।
  • राज्यों के वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति (ईसी) ने नवंबर 2013 में शिलोंग में अपनी बैठक के बाद विधेयक पर कुछ सिफारिशें की। अधिकार प्राप्त समिति की कुछ सिफारिशें प्रारूप संविधान (115वां संशोधन) विधेयक में शामिल की गई। संशोधित प्रारूप मार्च 2014 में अधिकार प्राप्त समिति के विचार के लिए भेजा गया।
  • जीएसटी लागू करने के लिए लोकसभा में मार्च 2011 में 115वां संविधान (संशोधन) विधेयक लोकसभा में पेश किया गया। 15वीं लोकसभा भंग होने से यह विधेयक स्वतः समाप्त हो गया।
  • जून, 2014 में नई सरकार की स्वीकृति के बाद प्रारूप संविधान संशोधन विधेयक अधिकार प्राप्त समिति को भेजा गया।
  • विधेयक के विभिन्न पहलुओं पर उच्च अधिकार प्राप्त समिति के साथ बनी सहमति के आधार पर मंत्रिमंडल ने 17-12-2014 को देश में वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) लागू करने के लिए आवश्यक संविधान संशोधन के लिए विधेयक प्रस्तुत करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी। 19-12-2014 को विधेयक लोकसभा में पेश किया गया और सदन ने इसे 06-05-2015 को पारित कर दिया। फिर इसे राज्यसभा की प्रवर समिति को भेजा गया। समिति ने 22-07-2015 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
भारत में जीएसटी का प्रशासनिक स्वरूप
भारत के संघीय ढांचे को ध्यान में रखते हुए जीएसटी के दो घटक होंगे- केन्द्रीय जीएसटी (सीजीएसटी) और राज्य जीएसटी (एसजीएसटी)। केन्द्र और राज्य दोनों एक साथ मूल्य श्रृंखला पर वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) लगाएंगे। समानों की प्रत्येक सप्लाई और सेवाओं पर टैक्स लगाया जाएगा। केन्द्र, अपना केन्द्रीय वस्तु और सेवा कर (सीजीएसटी) लगाएंगा और कर संग्रह करेगा और राज्य, अपने राज्य के अंदर सभी कारोबार पर राज्य वस्तु और सेवा कर (एसजीएसटी) लगाएंगे। सीजीएसटी के इनपुट टैक्स क्रेडिट से हर चरण में आउटपुट पर सीजीएसटी देनदारी चुकाई जाएगी। इसी तरह इनपुट पर अदा किए गए एसजीएसटी से आउटपुट पर एसजीएसटी को अदा किया जा सकेगा। क्रेडिट के आड़े-तिरछे अतिरिक्त उपयोग की अनुमति नहीं दी जाएगी।
वस्तु और सेवाओं से संबंधित एक विशेष कारोबार पर एक साथ जीएसटी (सीजीएसटी) तथा राज्य जीएसटी (एसजीएसटी) टैक्स
केन्द्रीय जीएसटी और राज्य जीएसटी एक साथ प्रत्येक वस्तु और सेवा सप्लाई कारोबार पर लगाया जाएगा, लेकिन उन वस्तुओं और सेवाओं को छोड़कर जो जीएसटी के दायरे से बाहर हैं और वैसे कारोबार को छोड़कर जो न्यूनतम सीमा से कम हो। दोनों टैक्स सामान कीमत या मूल्य पर लगेगा, जबकि राज्य के वैट में वस्तु के मूल्य पर केन्द्रयी उत्पाद शुल्क सहित टैक्स लगाया जाता है।
जीएसटी व्यवस्था के अंतर्गत वस्तु और सेवाओं के बीच क्रेडिट का आड़े-तिरछे अतिरिक्त उपयोग
वस्तु और सेवाओं के बीच क्रेडिट का आड़े-तिरछे अतिरिक्त उपयोग करने की अनुमति होगी। इसी तरह एसजीएसटी के मामले में क्रेडिट के आड़े-तिरछे अतिरिक्त उपयोग की सुविधा होगी, लेकिन आईजीएसटी मॉडल के अंतर्गत वस्तु और सेवा सप्लाई के अंतर-राज्य मामले को छोड़कर सीजीएसटी और एसजीएसटी के आड़े-तिरछे अतिरिक्त उपयोग की अनुमति नहीं होगी।
आईजीएसटी तरीके के संदर्भ में जीएसटी के अंतर्गत वस्तुओं और सेवाओं के अंतर-राज्य कारोबार पर टैक्स
केन्द्र अंतर-राज्य कारोबार के मामले में संविधान के अनुच्छेद 269ए (1) के अंतर्गत वस्तुओं और सेवाओं की अंतर-राज्य सभी सप्लाई पर एकीकृत वस्तु और सेवा कर (आईजीएसटी) लगाएगा और उसका संग्रह करेगा। आईजीएसटी लगभग सीजीएसटी प्लस एसजीएसटी के बराबर होगा। आईजीएसटी व्यवस्था इस तरह की गई है कि एक राज्य से दूसरे राज्य को इनपुट टैक्स क्रेडिट का प्रवाह अबाध रूप से हो। अंतर-राज्य विक्रेता अपनी खरीददारी पर आईजीएसटी, सीजीएसटी तथा एसजीएसटी क्रेडिट के समायोजन के बाद अपनी वस्तुओं की बिक्री पर केन्द्र सरकार को आईजीएसटी का भुगतान करेगा। निर्यातक राज्य आईजीएसटी भुगतान में प्रयुक्त एसजीएसटी का क्रेडिट केन्द्र को हस्तांतरित कर देगा। आयातक डीलर अपने राज्य में आउटपुट टैक्स दायित्व (दोनों सीजीएसटी और एसजीएसटी) पूरा करते हुए आईजीएसटी क्रेडिट का दावा करेगा। केन्द्र एसजीएसटी भुगतान में प्रयुक्त आईजीएसटी क्रेडिट आयातक राज्य को हस्तांतरित करेगा। जीएसटी एक गंतव्य आधारित टैक्स है इसलिए अंतिम उत्पाद पर सभी एसजीएसटी साधारतः उपभोक्ता राज्य को प्राप्त होगा।
जीएसटी लागू करने में सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) का उपयोग
देश में जीएसटी लागू करने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों ने मिलकर वस्तु और सेवा कर नेटवर्क (जीएसटीएन) बनाया है। यह लाभ रहति गैर-सरकारी कंपनी के रूप में पंजीकृत है ताकि केन्द्र तथा राज्य सरकारों टैक्स देने वाले लोगों और अन्य हितधारकों के लिए साझा सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अवसंरचना उपलब्ध कराई जा सके। जीएसटीएन का मुख्य उद्देश्य करदाताओं को मानक और एक समान इंटरफेस प्रदान करना है और केन्द्र तथा राज्य/केन्द्रशासित सरकारों के साथ अवसंरचना और सेवा साझा करना है।
जीएसटीएन साझा जीएसटी पोर्टल सहित व्यापक अत्याधुनिक आईटी अवसंरचना विकास का कार्य कर रही है। इससे पंजीकरण, रिटर्न तथा सभी करदाताओं को भुगतान और वैसे राज्यों के लिए बैंक एन्ड आईटी मॉड्यूल प्रदान करना है। इसमें रिटर्न प्रोसेसिंग, पंजीकरण, ऑडिट, एसेसमेंट, अपील शामिल हैं। जीएसटी के सफल प्रशासन के लिए सभी राज्य, लेखा-प्राधिकार, भारतीय रिजर्व बैंक तथा बैंक आईटी अवसंरचना तैयार कर रहे हैं।
कागज रूप में रिटर्न नहीं भरे जा सकेंगे। सभी टैक्स भुगतान ऑनलाइन होंगे। एक-दूसरे से नहीं मिलने वाले रिटर्न ऑटो-जेनरेट होंगे और मानवीय हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं होगी। अधिकतर रिटर्न सेल्फ एसेस होंगे।
जीएसटी के अंतर्गत आयात पर टैक्स
आयात पर अभी लगने वाला अतिरिक्त उत्पाद शुल्क या सीवीडी और विशेष अतिरिक्त शुल्क या एसएडी जीएसटी में समाहित हो जाएंगे। संविधान के अनुच्छेद 269ए (1) की व्याख्या के अनुसार भारत के भू-भाग में सभी प्रकार के आयात पर आईजीएसटी लगेगा। वर्तमान व्यवस्था से विभिन्न आयातित वस्तु का उपभोग करने वाले राज्य आयातित वस्तुओं पर आईजीएसटी भुगतान में से अधिक हिस्सा प्राप्त करेंगे।
संविधान (122वां संशोधन) विधेयक 2014 की प्रमुख विशेषताएं
विधेयक की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं-
  1. वस्तु और सेवा कर विषय पर कानून बनाने के लिए संसद और राज्य विधायिकाओं को एक साथ शक्ति दी गई।
  2. केन्द्रीय उत्पाद शुल्क, अतिरिक्त उत्पाद शुल्क, सेवा कर, अतिरिक्त सीमा शुल्क जिसे सामान्य रूप से काउंटर वेलिंग ड्यूटी कहा जाता है तथा विशेष अतिरिक्त सीमा शुल्क जैसे विभिन्न केन्द्रीय अप्रत्यक्ष कर इसमें समाहित हो जाएगें।
  3. राज्य वैल्यू ऐडेट टैक्स/सैल्स टैक्स, मनोरंजन कर (स्थानीय निकायों द्वारा लगाए जाने वाले टैक्स से अलग), केन्द्रीय बिक्री कर (टैक्स केन्द्र लगाता है और संग्रह राज्य करते है), ऑक्टराय, इंट्री टैक्स, परचेज टैक्स, लग्जरी टैक्स तथा लॉटरी, सट्टे और जुए पर टैक्स।
  4. संविधान के विशेष महत्व की घोषित वस्तुओं की अवधारणा समाप्त।
  5. वस्तुओं और सेवाओं के अंतर-राज्य कारोबार पर एकीकृत वस्तु और सेवा कर लगाने का प्रावधान।
  6. मानवीय खपत के लिए नशीली शराब को छोड़कर सभी वस्तुओं और सेवाओं पर जीएसटी लगाया जाएगा। पेट्रोलियम तथा पेट्रोलियम उत्पादों पर बाद की तिथि से जीएसटी लगाया जाएगा। यह तिथि वस्तु और सेवा कर परिषद की सिफारिश पर अधिसूचित की जाएगी।
  7. पांच वर्षों तक राज्यों को वस्तु और सेवा कर लागू करने में हुए राजस्व नुकसान के लिए मुआवजा।
  8. वस्तु और सेवा कर से संबंधित विषयों की जांच के लिए वस्तु और सेवा कर परिषद का गठन तथा टैक्स दरें, टैक्स, सेस तथा सम्मिलित अधिभार छूट सूची तथा न्यूनतम सीमा, मॉडल जीएसटी कानून आदि पर केन्द्र और राज्यों को सिफारिश। यह परिषद केन्द्रीय वित्त मंत्री की अध्यक्षता में कार्य करेगी और सभी राज्य सरकारें इसकी सदस्य होंगी।
जीएसटी के अंतर्गत प्रस्तावित पंजीकरण प्रक्रिया की प्रमुख विशेषताएं
जीएसटी के अंतर्गत प्रस्तावित पंजीकरण प्रक्रियाओं की महत्वपूर्ण विशेषताएं इस प्रकार हैः
  1. वर्तमान डीलर- वर्तमान वैट/केन्द्रीय उत्पाद तथा सेवा कर देने वालों को जीएसटी के अंतर्गत पंजीकरण के लिए नया आवेदन नहीं कर पड़ेगा।
  2. नए डीलर- जीएसटी के अंतर्गत पंजीकरण के लिए केवल एक आवेदन ऑनलाइन भरा जाएगा।
  3. पंजीकरण संख्या पीएएन (पैन) आधारित होगी और केन्द्र और राज्य दोनों के काम आएगी।
  4. दोनों टैक्स अधिकारियों को एकीकृत आवेदन।.
  5. प्रत्येक डीलर को यूनिक आईडी जीएसटीआईएन दिया जाएगा।
  6. तीन दिनों के अंदर मानित स्वीकृति।
  7. केवल जोखिम वाले मामलों में पंजीकरण के बाद जांच।

THE UNIVERSE MODELS OF UNIVERSE

Geocentric Model   – The term “geocentric” means “earth–centered”. The geocentric model claimed that Earth was the center of the cosmos....