Famous Personalities of Indian Freedom Movement

जाकिर हुसैन 1897-1969
  • हैदराबाद में जन्मे डॉ. जाकिर हुसैन ने 1920 में राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया।
  • वह जामिया मिलिया जैसे राष्ट्रवादी संस्थान के संस्थापकों में से एक थे तथा 1926 में 29 वर्ष की आयु में इसके वाईस चांसलर बने।
  • महात्मा गांधी के आग्रह पर उन्होंने वर्धा शिक्षा योजना तथा बेसिक शिक्षा प्लान के नाम से जारी किया गया।
  • उन्होंने छात्रों को स्वरोजगार परक बनने का सुझाव दिया तथा राज्यिक ज्ञान के अलावा राष्ट्रीय विचार भी रखे वह चाहते थे कि पश्चिमी ज्ञान को भारतीय परिवेश में ढालकर उसका उपयोग भाषा, साहित्य के विकास पर लिया जाये।
  • वह अलीगढ़ विश्वविद्यालय के उपकुलपति बने, बाद में बिहार के गवर्नरभारत के उपराष्ट्रवादी तथा राष्ट्रपति बने।
  • वह भारत के पहले राष्ट्रपति थे, जिनका पद पर रहते निधन हुआ।तेज बहादुर सप्रू 1875-1949
    • तेज बहादुर सप्रू पेशे से वकील थे। उनका जन्म अलीगढ़ में हुआ तथा उर्दूफारसी के विद्वान थे।
    • वह अनेकों वर्षों तक यू.पी. कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। ये सर्वेधानिक संघर्ष में विश्वास करते थे।
    • उन्होंने लखनऊ समझौते में भी महत्वपूर्ण कार्य किया तथा 1919 में लिबरल पार्टी में भाग लिया।
    • वह वाइसराय की कार्यकारी कौंसिल में निधि-सदस्य बने तथा अनेकों महत्वपूर्ण कानूनों को पास करवाया।
    • सबसे खास था 1910 में प्रेस कानून को समाप्त करना।
    • वह नेहरू कमेटी के भी सदस्य रहे तथा संघीय राजनीति का समर्थन किया।
    • सन् 1934 में वह प्रिवी कौंसिल के भी सदस्य बने।
    • विनायक दामोदर सावरकर 1883-1966
      • विनायक दामोदर सावरकर क्रांतिकारी कवि, इतिहासकार तथा समाज सेवक थे।
      • उन्होंने 1899 में मित्र मेला नामक संस्था की स्थापना की, जो बाद में अभिनव भारत समाज (1904) में परिवर्तित हो गयी।
      • वह 1906 में लंदन में बनी फ्री इंडिया सोसायटी के संस्थापकों में से थे।
      • उन्होंने इंडियन वार ऑफ इंडिपेंडेंस पुस्तक में पहली बार 1857 के विद्रोह को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पहली जंग कहा
      • 1910 में उन्हें नासिक षड़यंत्र केस में गिरफ्तार किया गया तथा अंडमान, पोर्ट ब्लेयर में निर्वासित किया गया।
      • जेल से छूटने के बाद उन्होंने हिंदू महासभा में भाग लिया तथा हिंदुत्व के कट्टर समर्थक बन गए।
      अबुल कलाम आज़ाद 1888-1958
      • उनका जन्म मक्का में हुआ तथा वह कलकत्ते में आकर रहने लगे।
      • उन्होंने स्वदेशी आंदोलन से भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की शुरुआत की, बाद में रोलेट सत्याग्रह में भाग लेने के कारण वह गांधी जी के संपर्क में आए।
      • अपनी दो अखबारों अल हिलाल (1912) तथा अल बलाग (1915) के द्वारा उन्होंने राष्ट्रवादी विचारों का प्रचार किया। यह अखबार उर्दू भाषा में छपते थे। वह दो प्रसिद्ध पुस्तकों ‘इंडिया विन्स फ्रीडम’ तथा ‘गुबरे-ए-खातिर’ (पत्र संग्रह) के भी लेखक थे। पहली पुस्तक अंग्रेजी में थी तथा दूसरी उर्दू में।
      • वह कई मुस्लिम धार्मिक आंदोलनों अहरार तथा खिलाफत में भी प्रतिभागी रहे एवं जमात-उल-उलेमा नामक धार्मिक संस्था के अध्यक्ष भी रहे।
      • वह कांग्रेस अधिवेशन (1923, दिल्ली, विशेष) के सबसे युवा अध्यक्ष बने तथा (1940-45) तक लंबे समय तक इसके अध्यक्ष भी रहे।
      • उन्होंने शिमला कांफ्रेंस तथा केबिनेट मिशन के ब्रिटिश सदस्यों के साथ हुई वार्ता में हिस्सा भी लिया। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् वह भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने तथा महत्वपूर्ण शैक्षिक संस्थानों, जैसे-राष्ट्रीय औद्योगिक संस्थान, खड्गपुर, विश्वविद्यालय तथा माध्यामिक शिक्षा कमीशन तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के संस्थापक सदस्य भी रहे।
      अच्युत एस. पटवर्धन 1909-71
      • ये कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापकों में से एक थे। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्होंने महाराष्ट्र में क्रांतिकारी गतिविधियों भूमिगत) का सफलतापूर्वक संचालन किया था।
      • स्वतंत्रता के पश्चात् उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया।
      अरबिंदो घोष
      • अरबिंदो घोष ने स्वदेशी आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाई थी तथा वह निष्क्रिय विरोध के समर्थक नहीं थे।
      • सिविल सेवा परीक्षा में चुने जाने के बाद सरकार ने उनकी नियुक्ति नहीं की।
      • उन्होंने अपने उग्रवादी विचारों का प्रचार; युगांतर तथा वंदेमातरम् पत्रिकाओं के द्वारा किया।
      • उन्हें अलीपुर षड्यंत्र केस (1910) में आरोपित किया गया परंतु बाद में साक्ष्यों के अभाव में उन्हें छोड़ दिया गया।
      • सूरत कांग्रेस में हुए नरमपंथी चरमपंथी संघर्ष के पश्चात् उन्होंने सक्रिय राजनीति छोड़ दी तथा अध्यात्म की ओर मुड़ गए।
      • उन्होंने पांडिचेरी में आश्रम की स्थापना की तथा आध्यात्मिक गुरु बन गए। उनकी पुस्तक लाइफ डिवाइन के नाम से छपी।
      अब्दुल गफ्फार खान 1890-1988
      • इनका जन्म उत्तर पश्चिमी सीमांत (नार्थ वेस्ट फ्रेंटियर) के उत्तमजायी जिले में हुआ।
      • रोलेट सत्याग्रह से ही इन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेना शुरु किया।
      • उन्होंने हर गांधीवादी आंदोलन खिलाफत, असहयोग सविनय अवज्ञा, सत्याग्रह (1940) तथा भारत छोड़ो में अग्रणी भूमिका निभाई तथा 14 वर्षों तक कारागार में रहे। वह गांधी जी की सत्याग्रह की विचारधारा में विश्वास व्यक्त करते थे इसलिए उन्हें सीमांत गांधी भी कहा गया।
      • उन्होंने 1929 में खुदाई खिद्मतगार (भगवान के सेवक) नामक एक संस्था भी बनाई जो लाल वस्त्र धारण करते थे। जिसे, लाल कुर्ती आंदोलन, भी नाम मिला।
      • उनके स्वयंसेवक ग्रामीण उद्योग विकास तथा पश्तू स्त्रियों के लिए समाज सुधार का भी कार्य करते थे। वह ‘पख्तून', नामक एक मासिक पत्रिका का संपादन करते थे।
      • इस धर्मनिरपेक्ष पठान ने लीग की सांप्रदायिक राजनीति का हमेशा ही विरोध किया तथा भारत-विभाजन के वह कट्टर विरोधी थे।
      • जब वह विभाजन को रोकने में असफल रहे तो उन्होंने अलग पख्तूनिस्तान की मांग की वह; फ़ख्र-ए-अफगान (पठानों का गर्व) के नाम से प्रसिद्ध हुए।
      • उन्हें सन् 1987 में भारत रत्न से सम्मानित किया। ऐसा सम्मान प्राप्त करने वाले वह पहले गैर-भारतीय थे।
      बारीन्द्र कुमार घोष 1880-1959
      • बारीन्द्र कुमार घोष क्रांतिकारी राष्ट्रवादी थे।
      • उन्होंने स्वदेशी आंदोलन में भाग लिया तथा वह अरबिंदो घोष के उग्रवादी विचारधारा से प्रेरित थे और उनके सहयोगी भी रहे।
      • बारीन्द्र कुमार घोष 1902 में बनी गुप्त संस्था अभिनव भारत (कलकत्ता) में भी भाग लिया था।
      • वे युगांतर’ नामक क्रांतिकारी पत्रिका जो राष्ट्रवादी तथा क्रांतिकारी विचारों का प्रसार करती थी, से भी जुड़े रहे।
      • औपनेविशिक शासन के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए उन्हें मृत्युदंड दिया गया, जिसे बाद में आजीवन कारावास में बदल दिया गया। उन्होंने बाद में स्टेट्समैन अखबार के कार्य से अपने आप को जोड़ लिया।चार्ल्स फ्रीयर एंड्रयूज
        • सी.एफ. एंड्रयूज एक ईसाई मिशनरी थे। वह महान मानव प्रेमी थे।
        • उन्होंने श्रमिक वर्ग तथा अन्य पिछड़ी जातियों के उत्थान के लिए दक्षिणी अफ्रीका तथा भारत में कार्य किया।
        • चार्ल्स फ्रीयर एंड्रयूज ने मद्रास के सूत श्रमिकों की हड़ताल का 1918 तथा 1919 दोनों में ही समर्थन किया तथा बेरोजगार चाय बागान श्रमिकों की सहायता भी की (चांदपुर)।
        • वह दो मौकों पर 1925 तथा 1921 में ट्रेड यूनियन कांग्रेस के अध्यक्ष भी बने।
        • अस्पृश्यता के विरुद्ध संघर्ष में उन्होंने डा. अम्बेडकर का साथ दिया।
        • उन्होंने अनेक देशों के मजदूरों के अधिकारों के लिए कार्य किया-जिसमे प्रमुख थे भारतीय मूल के वह श्रमिक, जो दक्षिणी तथा पूर्वी अफ्रीका, वेस्टइंडीज व फिजी के कामगार थे।
        • उन्होंने उनकी समस्याओं से संबंधित आंकड़े एकत्रित कर उन्हें सरकार के सामने रखा। उन्होंने उपनिवेशवाद के विरुद्ध भारत तथा अन्य देशों में संघर्ष किया। उ
        • नके गरीबों तथा श्रमिकों के प्रति प्रेम के कारण गांधी जी ने उन्हें दीनबंधु नामकरण दिया, इसके बावजूद कि वह एक विदेशी थे। उनकी उपनिवेशवाद के विरुद्ध लड़ाई जीवन पर्यंत जारी रही।

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