Famous Personalities of Indian Freedom Movement 2

भगत सिंह 1907-31
  • शहीदे-आजम, भगत सिंह का जन्म लायलपुर (पंजाब) में हुआ।
  • वह प्रतिभा सपन्न, शिक्षित तथा महान क्रांतिकारी विचारों से ओत-प्रोत नवयुवक थे। उनका उद्देश्य न केवल ब्रिटिश साम्राज्यवाद को ही समाप्त करना था वरन् वे भारत में रूसी क्रांति की तरह राजनीतिक बदलाव भी लाना चाहते थे।
  • गांधीवाद से रुष्ट होकर उन्होंने हिंसा का रास्ता चुना तथा हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल होकर ही सांर्डस का वध किया जो लाहौर के बदनाम पुलिस अधिकारी थे।
  • उन्होंने बटुकेश्वर दत्त के साथ केंद्रीय असेम्बली में दो बम फैके, जिससे कोई हताहत नहीं हुआ।
  • वह समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष तथा लोकतांत्रिक भारत की स्थापना में विश्वास रखते थे तथा हर प्रकार की संप्रदायवादी राजनीति के विरुद्ध थे।
  • वह ऐसे पहले क्रांतिकारी थे, जो सभी वर्गों तथा लोगों के द्वारा आज तक भी याद किए जाते हैं।
  • भगत सिंह को 23, मार्च, 1931 में लाहौर षडयंत्र केस के सिलसिले में अन्य दो लोगो के साथ फांसी दी गई।
धोंधो केशव कर्वे 1858-1962
  • इनका उपनाम अन्ना साहिब था। वह महान समाज सुधारक तथा शिक्षाविद् भी थे।
  • उन्होंने विधवा-पुनर्विवाह के लिए कार्य किया तथा इसके लिए विवाहोत्तोजक मंडली (विधवा पुनर्विवाह समिति) का गठन किया, (1893)। इसके लिए उन्होंने स्वयं एक विधवा से विवाह किया जिससे कि हिंदु नवयुवकों में अच्छा संदेश जा सके।
  • वह स्त्री शिक्षा के भी प्रबल समर्थक थे।
  • इससे उन्होंने 1907 में महिला महाविद्यालय (महिला स्कूल) की स्थापना की।
  • इन्होंने 1916 में प्रथम महिला विश्वविद्यालय जो भारत में अपनी तरह का पहला विश्वविद्यालय था, की स्थापना में योगदान दिया। उन्हें समता संघ वर्गों में समानता का अधिकार प्रदान करने का था।
  • सन 1958 में उन्हें भारत-रत्न सम्मान भी मिला।
बी. आर. अम्बेडकर 1891-1956
  • भारतीय संविधान सभा की प्रारूप सीमिति के अध्यक्ष तथा दलितों के प्रखर नेता डा. अम्बेडकर का जन्म महू (मध्य प्रदेश) में महार जाति में हुआ।
  • यह जाति हिंदू समाज में अस्पृश्य समझी जाती थी।
  • वह कोलंबिया तथा लंदन विश्वविद्यालय से शिक्षित हुए।
  • उन्होंने दलित जातियों के उत्थान के लिए अनेकों संस्थाओं, पत्रिकाओं के द्वारा प्रचार कार्य किया।
  • 1924 में डिप्रेस क्लासस इंस्टीट्यूट तथा 1927 में समाज समता संघ की स्थापना की।
  • बी. आर. अम्बेडकर ने पीपुल्स एजुकेशन सोसाइटी के द्वारा अनेक कॉलेज तथा हॉस्टल खोले।
  • उन्होंने दलित जातियों के लिए प्रांतीय तथा केंद्रीय असेम्बलियों में सुरक्षित स्थानों की मांग तथा वह मेकडोनाल्ड अवार्ड के पुरजोर समर्थक थे परंतु कांग्रेस व विशेषकर गांधी जी के प्रयासों के कारण उन्होंने पूना समझौता किया (1932)।
  • वह जाति प्रथा का उन्मूलन चाहते थे तथा उसके बारे में अपनी पुस्तक एनिहिलेशन ऑफ कास्टस् (1936) में इसका वर्णन किया है।
  • विधि सदस्य के तौर पर उन्होंने हिंदू कोड बिल लाने का प्रस्ताव पारित करवाया जिसमें सभी हिंदू जातियों को समानता दी गई इसके अलावा उन्होंने अनेक पार्टियों का गठन किया जैसे- लेबर पार्टीरिपब्लिकन पार्टी इत्यादि।
हेनरी लुई विलियम डिराजियो 1809-31
  • वह एंग्लो इंडियन मूल के विदेशी थे, जो फ्रांसीसी क्रांति से प्रभावित होकर समाज-सुधार के कार्य में जुट गए तथा कलकत्ता को उन्होंने अपना निवास बना लिया था।
  • वह भारत के पहले राष्ट्रवादी कवि थे। उन्होंने अपने प्रतिक्रियावादी विचारों से बंगाल के अनेक नौजवानों को प्रभावित किया तथा उन्हें बेकार के अंधविश्वासों तथा आडंबरों को त्यागने को कहा।
  • उन्होंने कई अकादमियों की स्थापना की, जिसमें प्रमुख थी- सोसाइटी फार एक्वाजिशन ऑफ नोलेजबंगहित सभाएग्लोइंडियन हिंदू एसोसिएशन तथा डिबेटिंग क्लब आदि उन्होंने कलकत्ता लाइब्रेरी गेजेट, तथा होसपीयर्स, नामक पत्रिकाओं का भी संपादन कार्य किया।
  • उनका यंग बंगाल आंदोलन इटली के मैजिनी के यंग इटली से प्रभावित था।
  • वह कलकत्ता के हिंदू कॉलेज में इतिहास तथा साहित्य के प्रवक्ता के रूप में कार्य करने लगे परंतु उनके अतिवादी विचारों के चलते उन्हें पद से हटा दिया गया तथा इन्हीं अतिवादी विचारों के कारण उनका आन्दोलन अधिक देर तक न चल सका।
बेहरामजी-एम-मालाबारी 1853-19-12
  • बेहरामजी-एम-मालाबारी गुजरात के कवि तथा समाज सुधारक थे।
  • उन्होंने नीतिविनोद (1875) पुस्तक लिखी जो अति लोकप्रिय रही। (गुजराती कविताओं का संग्रह)- इंडियन म्यूस इन इग्लिश गार्व; अंग्रेजी कविता छंद; गुजरात एंड गुजराती, गुजरात का वर्णन; जैसी साहित्यक कृतियों की रचना की।
  • वह बाल-विवाह तथा जाति प्रथा के विरोधी थे, उन्होंने विधवा-पुर्नविवाह तथा स्त्रीपुरुष समानता पर विशेष जोर दिया।
  • बेहरामजी-एम-मालाबारी चाहते थे कि सामाजिक मसलों पर कानूनी प्रस्तावों का सहारा लिया जाये।
  • उनके प्रयासो से एज ऑफ कंसेंट बिल (1891) पारित किया गया, जिसके द्वारा 12 वर्ष से कम आयु की कन्या के विवाह पर प्रतिबंध लगाया गया।
  • वह एक सामाजिक संस्था सेवा सदन के भी सदस्य बने तथा इन सभी सामाजिक मुद्दों पर वह समय-समय पर इंडियन स्पेक्टरवाइस ऑफ इंडियाबाम्बे गेजेट तथा टाइम्स ऑफ इंडिया में लिखते रहते थे।
अक्षय कुमार दत्त
  • अक्षय कुमार दत्त एक समाज-सुधारक तथा क्रांतिकारी थे।
  • ब्रह्म समाज से प्रभावित होकर उन्होंने समाज सुधार के कार्य किए- तत्वबोधिनी पत्रिका के संपादक रहे तथा विधवा-विवाह का समर्थन व बहु-विवाह प्रथा का विरोध किया।
  • वे एक प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे।
चितरंजन दास 1870-1926
  • इनका जन्म कलकत्ता में हुआ।
  • उन्होंने राजनीतिक जीवन की शुरुआत दादा भाई नारौजी के प्रचार अभियान से लंदन में शुरू की। वह उन दिनों विद्यार्थी थे।
  • चितरंजन दास को प्रसिद्धि तब मिली जब, उन्होंने बम कांड (1908) में अरविंदो की पैरवी की तथा उन्हें बरी करवा दिया।
  • वह 1921 में कांग्रेस अधिवेशन, इलाहाबाद में अध्यक्ष चुन लिए गए थे परंतु जेल में होने के कारण वह अध्यक्षता नहीं कर पाए।
  • 1922 के गया अधिवेशन में उन्होंने कांग्रेस की अध्यक्षता की।
  • गांधी जी के साथ मतभेदों के कारण उन्होंने पंडित मोती लाल नेहरु के सहयोग से कांग्रेस खिलाफत स्वराजिस्ट पार्टी(स्वराज पार्टी) का गठन दिसंबर 1922 में किया तथा कौंसिल के चुनावी में भागीदारी सुनिश्चित की।
  • 1924 में वह कलकत्ता म्यूनिसिपलिटी के महापौर बने तथा कृषि मुद्दों से जुड़े प्रश्नों पर सहयोग किया तथा यूरोपीय मंडल पर संबद्ध औद्योगीकरण का विरोध किया।
  • उन्होंने ग्राम पंचायतों की स्थापना पर बल दिया तथा सरकारी विभागों में सुधार के लिए पांच सूत्रीय क्रार्यक्रम दिया, जो इस प्रकार था : स्थानीय निकायों को प्रोत्साहन दिया जाये, स्थानीय निकायो से ही विकास के लिए योजना वृहद पैमाने पर तैयार की जाए, इस प्रकार के विकास की योजना राज्य के लिए भी लागू होनी चाहिए, ग्रामीण केंद्रों तथा वृहद केंद्रों को अधिक स्वायत्ता देनी चाहिए, अवशिष्ट शक्तियों का प्रयोग केंद्र सरकार के द्वारा बेहतर ढंग से होना चाहिए।
  • वे देशबंधु के उपनाम से विख्यात रहे तथा उनकी मृत्यु दार्जिलिंग में हुई।ज्योतिबा फुले 1827-90
    • ज्योतिबा फूले ने दलित जातियों के सामाजिक उत्थान के लिए कार्य किया।
    • इसके लिए उन्होंने सत्यशोधक समाज (1873) तथा दीनबंधु सार्वजनिक सभा (1884) की स्थापना की।
    • उन्होंने ब्रिटिश प्रशासन की पिछड़ी जातियों की जागृति के लिए दी जाने वाली शिक्षा की प्रशंसा की। परन्तु इस बात की आलोचना भी की, कि उच्च शिक्षा के लिए धन को अन्य पदों में खर्च किया जा रहा है।
    • ज्योतिबा फुले ने प्रार्थना समाज तथा सार्वजानिक सभा की इस बात को लेकर आलोचना की कि वे सिर्फ उच्च जातियों विशेषकर ब्राह्मणों में समाज-सुधार के कार्य करते हैं।
    • उनकी संस्था ने स्त्रियों तथा दलित जातियों में शिक्षा का प्रसार किया। उन्होंने गुलामगिरी तथा सार्वजनिक सत्यधर्मनामक पुस्तकों की रचना की थी।

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