(The Protection of Human Rights Act, 1993)

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 संपूर्ण देश में 28 सितम्बर, 1993 से लागू हुआ। जम्मू-कश्मीर के मामले में संविधान की सातवीं अनुसूची में उल्लेखित कुछ निश्चित प्रवर्तित विषयों तक ही इसका क्षेत्राधिकार है। 

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 में मानव अधिकार को परिभाषित किया गया है। इसे व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता तथा गरिमा से संबंधित बताया गया है जिसे संविधान द्वारा गारंटी प्रदान की गई है। ये अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदाओं (International Covenants) में समाविष्ट हैं तथा भारत में न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय (enforceable) हैं। अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा का तात्पर्य सिविल और राजनीतिक अधिकारों संबंधी अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा तथा 16 दिसंबर, 1966 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाए गए आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा तथा संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाए गए ऐसे अन्य प्रसंविदा या अभिसमय (Covenant or Convention) से है जिसे केंद्र सरकार अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट (Specify) करे। 


मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के अंतर्गत देश में मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए संस्थात्मक व्यवस्था की स्थापना संबंधी प्रावधान शामिल किए गए हैं। राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तथा राज्य स्तर पर राज्य मानवाधिकार आयोग की स्थापना, उसके सदस्यों की नियुक्ति, कार्य एवं शक्तियाँ, उनके अध्यक्ष एवं सदस्यों के कार्यकाल एवं सेवा शर्तें, मानवाधिकार हनन मामलों की जाँच प्रक्रिया, आयोग की वार्षिक एवं विशेष रिपोर्टों, मानवाधिकार न्यायालयों, वित्त, लेखा एवं लेखा परीक्षा (Account and Audit) के साथ अन्य विविध पहलुओं का जिक्र किया गया है। अधिनियम के अंतर्गत केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग नामक निकाय का गठन किया है। आयोग एक स्वायत्त संस्था की तरह कार्य करता है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission) 
1. अधिनियम के अनुसार आयोग निम्नलिखित व्यक्तियों से मिलकर बनेगाः
(i) अध्यक्ष - जो उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश रहा हो। 

(ii) एक सदस्य - जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश हो या रहा हो। 


(iii) एक सदस्य - जो किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश हो या रहा हो। 


(iv) दो सदस्य ऐसे व्यक्ति होंगे जिन्हें मानव अधिकारों से संबंधित विषयों का ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव हो। 
2. राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग तथा राष्ट्रीय महिला आयोग के अध्यक्ष विशिष्ट कार्यों के निर्वहन में सदस्य समझे जाएंगे। 

3. एक महासचिव (Secretary General) होगा जो आयोग का मुख्य कार्यकारी अधिकारी होगा तथा ऐसे कर्त्तव्यों का निर्वहन करेगा जो आयोग या अध्यक्ष उसे प्रत्यायोजित (Delegate) करेंगे। 
अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति (Appointment of Chairperson and Other Members)
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा एक समिति की अनुशंसा पर की जाएगी। इस समिति का गठन निम्नलिखित व्यक्तियों से मिलकर होगाः 
  • प्रधानमंत्री - अध्यक्ष
  • लोकसभा अध्यक्ष - सदस्य
  • गृहमंत्री - सदस्य
  • लोकसभा में विपक्ष के नेता - सदस्य
  • राज्यसभा में विपक्ष के नेता - सदस्य
  • राज्यसभा के उपसभापति - सदस्य
यहाँ ध्यान रखने वाली बात है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श किए बिना सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के किसी वर्तमान न्यायाधीश (sitting judge) की नियुक्ति नहीं की जा सकती है। अनुशंसा करने वाली समिति में किसी रिक्ति (Vacancy) के आधार पर अध्यक्ष या सदस्य की नियुक्ति अमान्य (Invalid) नहीं होगी। 
अध्यक्ष या सदस्यों का त्यागपत्र या पदमुक्ति (Resignation and Removal of Chairperson and Members)
अध्यक्ष या सदस्य राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लिखित सूचना द्वारा अपना पद त्याग सकेगा। राष्ट्रपति द्वारा अध्यक्ष या किसी सदस्य को निम्नलिखित आधार पर हटाया जा सकता हैः 
1. यदि वह दिवालिया घोषित किया जाता हो। 

2. अपने कार्यकाल के दौरान अपने पद के कर्त्तव्यों से अलग किसी सवैतनिक (Paid) रोजगार में लगा हो। 


3. मानसिक या शारीरिक अक्षमता के कारण अपने पद पर बने रहने के अयोग्य हो। 


4. विकृत चित्त (Unsound Mind) का हो तथा किसी सक्षम न्यायालय द्वारा ऐसा घोषित किया जाता हो। 


5. किसी ऐसे अपराध के लिए दोषी ठहराया जाता हो और कारावास की सछाा से दण्डित किया जाता हो जो राष्ट्रपति की राय में नैतिक गिरावट 
से जुड़ी हो।

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